निपाह वायरस तेजी से फैलने वाला वायरस है, जिससे जानवरों और इंसानों में गंभीर बीमारी हो सकती है।
निपाह वायरस की पहली खोज मलेशिया के कम्पंग सुंगाई निपाह द्वारा 1998 में की गयी थी।
इस वायरस को जानवरों से मनुष्यों में पहुंचाने के प्रमुख माध्यम चमगादड़ होते हैं, जिन्हें फ्रूट बैट कहा जाता है।
इस समय तक निपाह वायरस का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है, और इससे होने वाली गंभीर बीमारी को रोकने के लिए कोई टीका नहीं है।
निपाह वायरस का इंफ़ेक्शन एंसेफ़्लाइटिस के लक्षणों के साथ जुड़ा होता है, जिसमें दिमाग़ को नुक़सान होता है।
इस वायरस के संक्रमित होने पर लक्षण में तेज़ बुख़ार और सिरदर्द शामिल हो सकते हैं, जो 24 से 48 घंटों में मरीज़ को कोमा में ले सकते हैं।
निपाह वायरस के संक्रमण के प्रारंभिक दौर में सांस लेने में समस्याएँ हो सकती हैं और लगभग आधे मरीज़ों में न्यूरोलॉजिकल समस्याएँ भी हो सकती हैं।
साल 1998-99 में मलेशिया में हुए निपाह वायरस के संक्रमण में क़रीब 40% मरीज़ गंभीर नर्वस बीमारी से प्रभावित हुए थे और उन्हें बचाया नहीं जा सका था।
निपाह वायरस के सूअरों और इंसानों के बीच संपर्क से इसका ख़तरा ज्यादा बढ़ जाता है, और भारत और बांग्लादेश में इसकी चपेट में आने का अधिक ख़तरा है।
निपाह वायरस के खिलाफ बचाव के लिए अत्यंत सतर्कता और स्वच्छता का पालन करना महत्वपूर्ण है, और संक्रमण से बचने के लिए जानकारों और स्वास्थ्य विभागों के द्वारा जागरूकता फैलानी चाहिए।
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